मत समझिये इसे खेल के लिख देते है हर रोज़ दिल का हाल,
हर रोज़ उसी दर्द के तालाब में गोता लगाना पड़ता है गर लिखना हो जो शेर तो दानिस्ता खुद को जलाना पड़ता है,
हर रोज़ उसकी बेफिक्री के हाथों अपनी मोहोब्बत का गला दबाना पड़ता है, देखने पड़ते है कुछ ख्वाब जो कभी पूरे नही होंगे फिर इसी ख्याल से खुद को रुलाना पड़ता है।
-शिवम
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